मेरा साथी

by apoorvmat

मेरे साथी ने हसीं बाग़ को कुछ वीरान बना डाला

जो महज़ आदमी थे उन्हें हिन्दू, मुसलमान बना डाला

 

कुछ यूँ बुनी इस मुल्क़ की एक नयी हक़ीक़त उसने

जो सदियों मेज़बान थे, उन्हें मेहमान बना डाला

 

हम तलक तब पहुँचतीं थीं बस प्यार ही की बातें

अब बहन को बहन की नफरत का सामान बना डाला

 

मैं ये नहीं कहता कि पहले ऐब न थे वतन में

पर हालात ने इन्हें मौत का फरमान बना डाला

 

हालात-ए-क़ौम को देख कर क्या मुस्काएंगे मेरे ख़्वाजा

मेरे खोटे-से सच को भी अरमान बना डाला

 

मगर तुम्हें इससे क्या? तुम तो परदेस बस गए ‘अपूर्व’

ये कैसी चोट है जिसने तुम्हें इंसान बना डाला?

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