Main hee
बचपन की उस तस्वीर में
माँ के साथ किताब पढ़ते
मैं ही था
गर्मी की छुट्टी में
दीवार के साथ क्रिकेट खेलता
मैं ही था
अगस्त १९९४ में अजमेर जंक्षन से
दिल्ली की ट्रेन
मैने ही पकड़ी थी
उस दिन सुबह जो जूते
मेरे पापा ने पॉलिश किये थे
वो मेरे थे
मेल्बर्न के मक्डोनल्ड’स में
नानाजी को निराश कर
बीफ बर्गर मैने ही आजमाया था
कॉलेज की सीढ़ी पर
पेंसिल से जिस पर तुमने लिखा था
वो जीन्स मेरी थीं
जोका में जेटी पर देर रात
जगजीत सिंह की ग़ज़ल
मैने गाई थी
मुम्बई के कामथ रेस्टोरेंट में
रोज़ दो पराठे और झालफ्रेज़ी
मैं ही तो खाता था
दुबई की बॅंक स्ट्रीट पर
दफ़्तर के ट्रॅफिक में
अक्सर मैं फंस जाता था
कल की मीटिंग में क्रोध पर क़ाबू कर
मेच्यूर प्रोफेशनल की भूमिका
मैने ही निभाई थी
पर आज
आज जब आईने में देखा
तो खुद से पूछा
क्या ये मैं ही हूँ?